शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

जिंदगी की किताब ● [ अतुकांतिका ]

 524/2023

  

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●© शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कौन पढ़ सका है भला

जिंदगी की किताब का

हर एक पन्ना ,

रोज ही खुलता है नया

जो पहले नहीं था पढ़ा

पढ़ना है रोज नए पन्ने।


अदृष्ट भविष्य की किताब

खुलती जाती है नित्य,

पीछे मुड़कर

 नहीं देखती जिंदगी,

बढ़ते चले जाते हैं हम

और शाम हो जाती है,

 ये  जिंदगी 

तमाम हो जाती है।


कौन समझा है 

कि क्या है जिंदगी!

पन्ने दर पन्ने

पलटने का नहीं

पढ़ने का 

नाम है जिंदगी,

जो जितना पढ़ा

उतना ही 

आगे और आगे

बढ़ा,

बशर्ते अपना दोष

किसी और के 

मत्थे नहीं मढ़ा।


सभी लोग

कहाँ पढ़ते हैं

जिंदगी के बेतरतीब

लगे पन्ने,

यदि पढ़ते होते

तो पिछड़ते नहीं होते,

नरक में सड़ते 

नहीं होते।


शूकर श्वानवत भी

कोई जिंदगी होती है?

खाए पीए 

विसर्जन किया और

विदा हो लिए,

ऐसी जिंदगी भी

क्या ?

जिए न जिए!

जिंदा रहे या मुए!


आओ देखो पीछे

मुड़कर 'शुभम्',

अपने पद चिह्नों को

इस तरह छोड़ कर जाएँ!

कि आगामी पीढ़ियाँ 

अनुकरण कर पाएं!

एक जलती हुई

रौशनी छोड़कर जाएँ!


●शुभमस्तु !


07.12.2023●6.45 प०मा०

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