सोमवार, 18 दिसंबर 2023

मोती ● [दोहा गीतिका [

 540/2023

             

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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मुक्तावत  जीवन मिला,सीपी- सी ये   देह।

हे नर क्यों न सहेजता,खोल हृदय का गेह।।


कुंडलिनी   क्यों   सो   रही, तन के मूलाधार,

झूठे  नातों  में   रमा, कहता   जिन्हें   सनेह।


इड़ा  पिंगला   नाड़ियां, बसी सुषुम्ना  मध्य,

अमृत    बरसे  शून्य  में,नहीं  भींगता   मेह।


मोती   तेरे     पास है ,  फिर  भी उससे   दूर,

पता न कब मिल जायगी,देह एक दिन खेह।


माया - ठगिनी   ने ठगा,कौन न मानव जीव,

मुक्ता    को  चाहा  नहीं, भरा जवानी - तेह।


मानस में  मुक्ता  रखा, खोज रहा जग माँहि,

स्वाति - बिंदु खोता  रहा ,संतति के   संदेह।


'शुभम्' साधना लीन हो, जगा मुक्ति का धाम,

अपनी  ये  जगती  नहीं,समझे क्यों  अवलेह।


●शुभमस्तु !


16.12.2023● 7.15 प०मा०

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