592/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम का प्रेम
मनुज का हेम
सदा शुभ हितकारी।
भीलनी - बेर
बिना ही देर
किए स्वीकार सभी।
गीध की पीर
राम रणधीर
हरी, की कृपा तभी।।
राम से बैर
नहीं है खैर
विनाशक व्यभिचारी।
सिया की खोज
न होती रोज
काम आए वानर।
वीर हनुमान
धीर जमवान
शत्रु खाते थे डर।।
लखन का कोप
राम की ओप
सिया को शुभकारी।
वनों में मोद
क्षीर तट शोध
राक्षसी सुरसा- वध।
लंकिनी नाश
दानव हताश
गया सागर भी सध।।
राम की जीत
असुर भयभीत
'शुभम्' हित जयकारी।
● शुभमस्तु !
27.12.2023●4.00प०मा०
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