565/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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इसी देह में
पुरी अयोध्या
लंका सह लंकेश।
राम- शून्य में
प्रसवित अमृत
इड़ा पिंगला श्वास।
जीवन-दाता
त्रय पथगामिनि
फिर भी नहीं उजास।।
लंक मध्य में
हाटक लंका
मादक है परिवेश।
सोता रावण
सीता को हर
बदले तन का रूप।
लालच देता
वशीकरण का
लंकापति अघ-कूप।।
यम का फंदा
कसे हुए है
दसकंधर के केश।
जब लगती है
आग लंक में
कपि बजरंगी वीर।
करते सीता
की तब रक्षा
बँधा हृदय को धीर।।
अहंकार का
मरता रावण
पावन कर परिवेश।
●शुभमस्तु !
24.12.2023●7.45प०मा०
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