मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

एक राम ही साँचा ● [ गीत ]

 560/2023

  

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●©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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एक  राम ही

साँचा जग में

और  सभी कुछ क्षार।


औंधा सोया

गर्भान्तर में

जपता  मुझे  निकाल।

अंध कोठरी 

मुझे सताती

शून्य ज्योति का बाल।।


पल - पल बीतें

रौरव  जैसे 

गया बहुत थक हार।


जिस माता का

रक्त पिया है

अदा करूँ ऋण आज।

कैसे अपना

धर्म निभाऊं

झपटा हूँ  बन बाज।।


अंश जनक का

बिना न उनके

जीवन का उद्धार।


 बाहर आया

सब कुछ भूला

भटक गया मैं राह।

सोच रहा जो

भीतर उलटा 

बदल गई  हर चाह।।


काम कामिनी

कंचन काया

बने नरक के द्वार।


● शुभमस्तु !


24.12.2023●11.45आ०मा०

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