560/2023
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●©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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एक राम ही
साँचा जग में
और सभी कुछ क्षार।
औंधा सोया
गर्भान्तर में
जपता मुझे निकाल।
अंध कोठरी
मुझे सताती
शून्य ज्योति का बाल।।
पल - पल बीतें
रौरव जैसे
गया बहुत थक हार।
जिस माता का
रक्त पिया है
अदा करूँ ऋण आज।
कैसे अपना
धर्म निभाऊं
झपटा हूँ बन बाज।।
अंश जनक का
बिना न उनके
जीवन का उद्धार।
बाहर आया
सब कुछ भूला
भटक गया मैं राह।
सोच रहा जो
भीतर उलटा
बदल गई हर चाह।।
काम कामिनी
कंचन काया
बने नरक के द्वार।
● शुभमस्तु !
24.12.2023●11.45आ०मा०
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