582/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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ब्रह्मरंध्र में
राम रूप का
रस ले- ले मन मूढ़।
कुंडलिनी सो
रही मूल में
इड़ा पिंगला बंद।
छः - छः तेरे
तंत्रजाल की
ज्योति हुई है मंद।।
कब तक सोए
मूलबिन्दु में
पथ पर कर आरूढ़।
प्राणायाम न
करता है तू
खोल प्राण षट बंध।
शनैः - शनैः यों
ले जा ऊपर
बने न कोरा अंध।।
कब तक भटके
राह ज्योति की
बना रहेगा कूढ़।
जब तक काम
सर्प का दंशन
अमृत नहीं हलाल।
फिर मत कहना
नहीं बताया
करना नहीं मलाल।।
'शुभम्' द्वार
दसवाँ न खुला तो
नहीं सकेगा ढूँढ़।
●शुभमस्तु !
26.12.2023●5.30 प०मा०
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