529/2023
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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ओढ़ रजाई सूरज आया।
चंदा छिपा - छिपा शरमाया।।
लथपथ जल से तरुवर सारे।
पीपल, जामुन, शीशम प्यारे।।
गेहूँ, चना, मटर पर भाई।
चादर मानो श्वेत बिछाई।।
पंख समेटे बैठीं चिड़ियाँ।
गौरैया प्यारी पिड़कुलिया।।
छत पर मोर नाचते देखो।
कभी गूँजते करते केंखो।।
भैंस रँभाती खाती चारा।
करे जुगाली गायें न्यारा।।
दादी कहती शीत सताती।
अम्मा झट कम्बल ओढ़ाती।।
दही बिलोती अम्मा मेरी।
लवनी देती मुझे घनेरी।।
लप-लप करके मैं खा जाता।
पीना छाछ मुझे अति भाता।।
'शुभम्' मिला मिश्री तुम खाओ।
कान्हा जी की जय-जय गाओ।।
● शुभमस्तु !
11.12.2023● 5.00 प०मा०
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