शनिवार, 16 दिसंबर 2023

ममता ● [ सोरठा ]

 534/2023

                

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●© शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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ममता   का   भंडार, जननी  संतति   के  लिए।

महिमा  अपरम्पार, कष्ट  सहे  निज   देह   पर।।

माता   के   पर्याय,   नेह,  छोह, ममता,   दया।

मन,मानस निज काय,सब संतति को सौंपती।।


यह मानव तन जीव, विलग हुआ  जब गर्भ  से।

याद  न  आया   पीव, ममता   ने बाँधा    उसे।।

धीर,वीर  या  संत,  ममता   किसे  न  बाँधती!

प्रभु -  सा   प्यारा   कंत,धीरे  - धीरे   भूलता।।


तभी    मिलेंगे   राम,   माया  की ममता   तजे।

नहीं   छोड़ता  काम, बंधन  है  यह जीव    का।।

तत्त्व  एक  अनिवार, ममता  मानव  मात्र  को।

जिन्हें  न दया विचार, हिंसक हैं पशु  वन्य  वे।।


ममता  करे  निवास,  साँप  सपोलों  में   नहीं।

करता   हृदय  उजास, मानवता का   अंश   है।।

दया  धर्म   का मेह ,नारी   ममता -  मूर्ति    है।

स्वर्ग   बनाती  गेह,  बरसाती  नित प्रति यहाँ।।


रोक   न  मेरी   राह, ममता - पट में बाँध  कर।

एक मात्र  मम  चाह,  सेवा  करनी राष्ट्र   की।।

बेड़ी    बंधक    तंत्र,   ममता   मेरे   पैर    की।

 रटूँ  एक   यह   मंत्र,  रक्षा  करनी   देश   की।।


बाँध रही दिन-रात,  बहुविध ममता जीव  को।

कभी  नकारे   बात,  बनती  कभी   सकार  ये।

●शुभमस्तु !


14.12.2023●1.00प०मा०

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