बुधवार, 13 दिसंबर 2023

दिखती बस हरियाली है ● [ गीत ]

 530/2023

 

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● © शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जहाँ -जहाँ तक

दृष्टि घमाएँ 

दिखती बस हरियाली है।


क्षितिज - छोर पर 

छाए  बादल

पंक्तिबद्ध  हैं  पेड़  खड़े।

कुछ छोटे कुछ

बड़े -  बड़े हैं

पाँव जमाए सभी  अड़े।।


खेतों में हैं

गेहूँ गन्ना

चना - मटर मतवाली है।


दृश्य गाँव का

सुखद हृदय को

टेढ़े - मेढ़े    दगरों   पर।

चहल -पहल है

नर -  नारी की

गाय ,भैंस ,बछड़े बाहर।।


सभी व्यस्त हैं

निज काजों में

दिनकर की शुभ लाली है।


भरा सरोवर

जल से देखो

खड़े किनारे कदली झाड़।

आलू बोरे

भरे रखे हैं

ग्राम्यांचल का रूप उघाड़।।


जल - कल दो-दो 

खड़े   पास  में 

चलती भर -भर नाली है।


पास गाय के

बैठा बाहर

बाँच रहा कोई अख़बार।

एक जा रहा

रख कंधे पर

लंबा बाँस रखे अनिवार।।


एक सीध में

विद्युत -खम्भों

ने निज पंक्ति बना ली है।


'शुभम्' रंग हैं

विविध गाँव के

मेड़ - राह में  घास हरी।

सुखद लगे वह 

चले पाँव जो 

ओस  लदी दे रही तरी।।


ईश -सृष्टि ये

गाँव हमारे

महिमा सदा निराली है।


●शुभमस्तु !


12.12.2023●9.45आ०मा०

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