518/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● शब्दकार ©
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
राजनीति तो खेल है,मुख क्यों करे मलीन।
कभी हार होती रहे, कभी जीत की बीन।।
करते वादे नित्य ही,जनसेवक बन लोग,
सत्तासन पर बैठकर, लेते जन सुख छीन।
उठें खाक से लाख में, खेलें नेता लोग,
बकरी से हाथी बने, देह हो गई पीन।
अपने - अपने पेट की, चिंता हुई सवार,
छोटी मछली खा रहे, मगरमच्छ बड़ मीन।
आश्वासन दे लूटते ,जन -जन का विश्वास,
झूठ बोलना आम है, छलिया बड़े प्रवीन।
समझें सबसे श्रेष्ठ वे, करें देश में राज,
जनता को सम्बल नहीं, भाव भरे उर हीन।
'शुभम्' न नेता चाहते, करना देश -विकास,
कौन उन्हें पूछे भला, नारे नित्य नवीन।
● शुभमस्तु !
04.12.2023 ●7.15आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें