570/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम - सिंधु से
विलग जीव का
मानव रूपाकार।
कारण क्या वह
जीव सृजन का
नहीं जानता जीव।
कभी विलगता
कभी एकता
जान रहा वह पीव।।
धरती पर धर
रूप देह का
बनता वह आकार।
कोई कृमि है
कोई पशु है
कोई जलचर एक।
पर धर उड़ता
नभ में कोई
अलग सभी की टेक।।
नहीं छोड़ना
चाहे तन को
कोई भी साकार।
कर्म - बीज से
देह सृजन हो
योनि बदलती नित्य।
अवधि सभी की
करें अवधपति
निश्चय सभी सुचिंत्य।।
चलता क्रम यों
सकल सृष्टि का
सबका रामाधार।
● शुभमस्तु !
25.12.2023●12.15प० मा०
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