शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

राम- राम से सुरभित अगजग ● [ गीत ]

 554/2023

 

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●©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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राम -राम से

सुरभित अगजग

रिक्त न कण भी एक।


अवध हृदय को

बना मूढ़ नर

देह मनुज का देश।

इड़ा -पिंगला

गंगा - यमुना

नाड़ी सुषुमन वेश।।


सरस्वती का

रूप मनोहर

बाँध टकटकी टेक।


माया मन में

नित्य बाँधती

कनक कामिनी काम।

मद मत्सर में 

डूबा तन - मन

याद न आते राम।।


दानव - दल ये

रावण -रिपु बन

देते हैं अविवेक।


मन में माला

राम- नाम की

जप ले प्रातः - शाम।

उड़ जाएगा

जिस दिन पंछी

लेगा तन विश्राम।।


साढ़े तीन 

हाथ का कुअटा

टर्राता   है   भेक।


●शुभमस्तु !


22.12.2023●1.30प०मा०

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