554/2023
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●©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम -राम से
सुरभित अगजग
रिक्त न कण भी एक।
अवध हृदय को
बना मूढ़ नर
देह मनुज का देश।
इड़ा -पिंगला
गंगा - यमुना
नाड़ी सुषुमन वेश।।
सरस्वती का
रूप मनोहर
बाँध टकटकी टेक।
माया मन में
नित्य बाँधती
कनक कामिनी काम।
मद मत्सर में
डूबा तन - मन
याद न आते राम।।
दानव - दल ये
रावण -रिपु बन
देते हैं अविवेक।
मन में माला
राम- नाम की
जप ले प्रातः - शाम।
उड़ जाएगा
जिस दिन पंछी
लेगा तन विश्राम।।
साढ़े तीन
हाथ का कुअटा
टर्राता है भेक।
●शुभमस्तु !
22.12.2023●1.30प०मा०
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