579/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नीति युक्त जो
शासन होता
रामनीति करणीय।
पहले जन के
राज जान लें
जनता की क्या चाह।
कोरी वाह न
लूटे राजा
समझे हिय की आह।।
किया राम ने
जन के भीतर
जाकर जो वरणीय।
वनवासी सब
अन्त्यज पिछड़े
पशु, पक्षी, जन, ढोर।
देख वेदना
राम पिघलते
कैसे रहते पौर।।
जनसेवा को
गले लगाया
तारा जो तरणीय।
नर वानर वे
भालू वन के
सबका लेकर साथ।
सीता जी की
खोज पूर्ण की
करके उन्हें सनाथ।।
'शुभम्' धर्म वह
कर्मठता से
सिखलाते धरणीय।
●शुभमस्तु !
26.12.2023● 12.00मध्याह्न।
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