578/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सबके त्राता
आश्रयदाता
स्वजन सभी के राम।
जगतारन प्रभु
नाव माँगते
गंगा करनी पार।
देते केवट
को उतराई
कर मुद्रा उपहार।।
डोले वन-वन
कंटक वीथी
पिछड़े -बिछड़े गाम।
शबरी के फल
जूठे खाते
दे निज पद की धूल।
गले लगाते
जन वनवासी
भगवा ओढ़ दुकूल।।
हनुमत जैसे
भक्त ढूँढ़कर
वन को किया ललाम।
कपि सुग्रीव मीत
जिनके बन
दिया गले का हार।
खग जटायु भी
हृदय लगाया
करतल का भी प्यार।।।
भेदभाव का
काम न कोई
जन-जन स्वधन सु-धाम।
● शुभमस्तु!
26.12.2023● 11.30आ०मा०
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