शनिवार, 16 दिसंबर 2023

मोती बनाम मुक्ति ● [ आलेख ]

 539/2023 


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 ●© लेखक

 ● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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इस असार अथवा ससार संसार- सागर में ऐसा बहुत कुछ है, जो सबके लिए नहीं है।सबके लिए सब कुछ हो भी नहीं सकता और न ही सब में सब कुछ पाने की क्षमता है न पात्रता।मोती कोई खाने की वस्तु नहीं है,किन्तु किसी के द्वारा मोती का भी भक्षण किया जाता है।सब जीव जंतु उसका भक्षण नहीं कर सकते। उसे पचा नहीं सकते। एकमात्र हंस ही वह प्राणी है,जो मोती -भक्षण की सामर्थ्य रखता है। अर्थात मोती हर साधारण के लिए नहीं है।सागर में सीपी, सीपी में स्वाती बिंदु ,एक नक्षत्र विशेष स्वाती में मेघों में स्वाती जल बिंदु का निर्माण, वह विशेष समय और परिस्थिति जब वह आसमान से गिरे और सागर स्थित सीपी के मुख में सीधे जा गिरे ;बशर्ते उस समय सीपी -मुख खुला हुआ भी हो ,तब कहीं जाकर एक मोती का सृजन होता है। यह भी तो हो सकता है कि स्वाति -बिंदु सीपी के अतिरिक्त अन्यत्र जा गिरे।सर्प के मुख में गिरने पर विष ,केले में कपूर,नीम में चन्दन बन जाए । और यदि सीपी में गिरने का संयोग बने तभी वह मोती बन सकता है। अपनी एक साखी में महात्मा कबीर ने कहा भी है : मूरख संग न कीजिए,लोहा जल न तिराइ। 

कदली,सीप,भुजंग मुख,एक बूँद तिहुँ भाइ।। 

 सीपी में मोती बन पाने का संयोग कब और कितनी बार बन पाता है, नहीं कहा जा सकता। सीपी में बने हुए इस मोती का पात्र वह हंस ही है ,जो इसे प्राप्त कर सके। हंस की वह कठोर साधना ही है,जो इसे प्राप्त करा सकती है।तात्पर्य यह है कि मोती का निर्माण और प्राप्ति दोनों ही कठोर साधनाएं हैं। मोती कौवों,टिटहरियों,बगुलों या अन्य सामान्य के लिए नहीं हैं। वह कठोर नियम संयम केवल हंसों द्वारा ही सम्भव है।

   मोती- निर्माण और प्राप्ति का यह अभिधात्मक अर्थ हुआ।मोती रूपी मुक्ता भी हर सामान्य मनुष्य के लिए नहीं है।वह मनुष्य भी हंस का प्रतीक है ,जो मुक्ता रूपी मोती को प्राप्त करता है। किसी के लिए दो वक्त की रोटी ही मोती के सदृश है। वह उसीके लिए रात- दिन एक किए रहता है। किसी के लिए उच्च पद, ऊँची कुर्सी, धन -दौलत,घर -मकान, प्रतिष्ठा ही मोती है। उनकी प्राप्ति ही उसे बहुमूल्य मुक्ता समान है।ये सभी जन न तो हंस हैं,और न उनके द्वारा प्राप्त भौतिक सुख ही मुक्ता सदृश हो सकते हैं। सुख मुक्ति का पर्याय नहीं है।सुख के जाने पर दुख आता है।किंतु मुक्तावस्था के बाद ऐसा कुछ नहीं होता कि मुक्तावस्था से पतित होना पड़े।मुक्तावस्था में एक अपरिसीम आनन्दानुभूति है ,जो कभी विषाद नहीं लाती ।इसलिए कोई भी भौतिक सुख मुक्तावस्था नहीं ला सकता। सच्चे मोती नहीं प्रदान कर सकता।

   यह संसार भौतिक सुख कामी जन के लिए ससार है तो आध्यात्मिक मुक्ति कामी साधकों के लिए असार है।कूप मंडूक के लिए सांसारिक सुख ही मोती से कम नहीं हैं। क्योंकि उसे तो अपनी उसी साढ़े तीन हाथ की कूप रूपी दुनिया में ही टर्र-टर्र करते हुए सुख सृजित करना है,सुख लूटना है, और 'सब ते भले वे मूढ़ जन, जिन्हें न व्यापै जगत गति ' के अनुसार उतने में ही मस्त रहना है। वे भला मुक्ति रूपी मोती का रसास्वादन किंवा आनंद ग्रहण करना क्या जानें!

        वास्तविक मुक्ति का मार्ग सुसाध्य नहीं है।वह दुधारी तलवार की धार पर चलने के समान है।जिस पर चलने की सामर्थ्य प्रत्येक में नहीं हैं।जिस पर चलना भी कठिन और उससे गिरना भी और भी घातक सिद्ध होता है। इसलिए एक साधारण और अपात्र व्यक्ति साहस भी नहीं कर सकता।अध्यात्म के पथ पर अग्रसर होने के लिए एक सतगुरु की आवश्यकता होती है।जिसका मिलना एक दुर्लभ कार्य है।यह तो उस पात्र व्यक्ति का परम सौभाग्य ही होगा कि उसे ऐसे गुरु का निर्देशन प्राप्त हो सके। 

     सत गुरु की खोज और उसके माध्यम से मुक्ति रूपी मुक्ता की प्राप्ति ही मानव जीवन की सार्थकता है।धन्य हैं वे लोग जिन्हें ऐसे सच्चे गुरु मिले हैं और उन गुरुओं ने अपने साथ - साथ अपने साधक शिष्यों का भी उद्धार करते हुए मुक्ति के मोती प्रदान किए हैं। 

 ●शुभमस्तु !

 16.12.2023●4.30 प०मा० 

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