587/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम - धूप की
ओट न छोड़ें
बड़ा भयंकर शीत।
कोहरा घना
काम केलि का
कितना है कमनीय?
रंग - रंग में
कर आच्छादन
जाना कब दमनीय??
बादल छाया
नर सिर ऊपर
किंतु नहीं भयभीत!
राम नाम की
बाँट रेवड़ी
अपना घर है रिक्त।
नाम लूटता
यश का कोरा
सोने में संसिक्त।।
भजन राम के
मुख से गाए
शेष न उर में तीत।
स्वाद जीभ के
रोचक लगते
तरणी में हैं छेद।
धीरे -धीरे
बढ़ता पानी
जान न पाए भेद।।
सँभल न पाया
बेड़ा डूबा
चला चाल विपरीत।
●शुभमस्तु !
27.12.2028●9.00आ०मा०
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