559/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
मैली चादर
इस काया की
धो ले भज ले राम।
अब तक सोया
गहन नींद में
खोया अपना रूप।
काम कामिनी
के रँग रँगकर
गिरा पतन के कूप।।
और नहीं कुछ
देख सका तू
दिखे मात्र धन- धाम।
माया - कंबल
तन पर लिपटा
धोई अपनी देह।
जिसे एक दिन
बन जाना है
इस धरती की खेह।।
कंचन जाना
असली सोना
खूब कमाया नाम।
अब तक भटका
लख चौरासी
कृमि, शूकर, खग, श्वान।
काया मानव
की पाई तो
अहंकार अभिमान।।
प्राण ले चला
यम का फंदा
उलझा जग के झाम।
● ©शुभमस्तु !
24.12.2023●10.30आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें