555/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम - रंग में
रँग ले मन को
तन है नाशी -खेह।
कूकर - शूकर
कृमि बन भूला
मानव - तन क्या लाभ?
पेड़ -लता का
रूप कभी था
कभी बना वन -डाभ।।
झूमा कुंजर
बन जंगल का
भीगा पावस - मेह।
अंश राम का
अंशी हैं वे
जल की नन्हीं बूँद।
उनसे निकला
उनको भूला
रहा नयन निज मूँद।।
काया अपनी
देख मनोहर
किया उसी से नेह।
दस-दस घोड़े
का रथ लेकर
यात्रा की आरम्भ।
घोड़े भागे इधर -उधर को
भरा द्वेष छल दंभ।।
टूट गया रथ
तब तक तेरा
तन का निःसंदेह।
● शुभमस्तु !
22.12.2023●2.00प०मा०
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