शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

भिखारी ● [अतुकांतिका ]

 549/2023

              

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●© शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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वाणी नहीं

मुख भी नहीं

फिर भी है शीर्ष पर

माँगने में

सर्वोपरि

मानव का मन।


ये भी मिले

वह भी मिले

सब कुछ पा ले ,

माँगने के 

उसके हैं

सब तरीके

निराले।


होता नहीं

पाकर कुछ

तृप्त,

रहता है 

सदा - सदा

ये मन संतप्त।


इसकी 

मृगमरीचिका में

क्या कुछ नहीं

जो न चाहे,

किसी को मिले

या न मिले,

उस पर 

उसकी निगाहें।


सबसे बड़ा

भिखारी बस

एक ही है

आदमी का मन,

न इसकी देह है

न अंगों में

 विभाजन,

तथापि इसके

दस घोड़े

दसों दिशाओं में

दौड़ रहे,

मन की विचित्र 

गतियों को

'शुभम्' भला कौन कहे!


●शुभमस्तु !


22.12.2023●8.15आ०मा०

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