549/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
वाणी नहीं
मुख भी नहीं
फिर भी है शीर्ष पर
माँगने में
सर्वोपरि
मानव का मन।
ये भी मिले
वह भी मिले
सब कुछ पा ले ,
माँगने के
उसके हैं
सब तरीके
निराले।
होता नहीं
पाकर कुछ
तृप्त,
रहता है
सदा - सदा
ये मन संतप्त।
इसकी
मृगमरीचिका में
क्या कुछ नहीं
जो न चाहे,
किसी को मिले
या न मिले,
उस पर
उसकी निगाहें।
सबसे बड़ा
भिखारी बस
एक ही है
आदमी का मन,
न इसकी देह है
न अंगों में
विभाजन,
तथापि इसके
दस घोड़े
दसों दिशाओं में
दौड़ रहे,
मन की विचित्र
गतियों को
'शुभम्' भला कौन कहे!
●शुभमस्तु !
22.12.2023●8.15आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें