577/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
महिमा राम
नाम की गा ले
भव सागर में नाव।
उलटा नाम
जपा कवि वर ने
मरा-मरा की टेर।
ब्रह्म समान
हो गए जप कर
की न राम ने देर।।
वाल्मीकि के
पावन उर में
मात्र राम का भाव।
पाप कमाए
बाँध पोटली
सिर पर लादी एक।
धोए धुलें न
बिना जतन के
कर्म न तेरे नेक।।
जन्म -जन्म तक
रिसते हैं वे
अघ ओघों के घाव।
राह कठिन है
भटक रहा है
अपनी मंजिल दिव्य।
राम - कनक को
छोड़ा तूने
किया इकट्ठा द्रव्य।।
'शुभम्' सँभल जा
अब भी हे नर!
खाली मत कर दाँव।
● शुभमस्तु !
26.12.2023●10.15आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें