568/2023
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●©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम - ध्वनि - गूँज
हृदय के बीच
निरंतर प्रभु- संवाद।
बाहर-भीतर
राम रमे हैं
अगजग में हैं राम।
कलरव में हैं
खग रव में वे
और न कोई नाम।।
नर -नारी में
राम रूप है
और न कुछ भी याद।
वही हिमालय
सुरसरिता वह
वही अमिय जल धार।
वही धरा की
प्यास तृप्ति वह
सुमनों का उपहार।।
गिरि से सागर
सागर से नभ
मेघों का अनुनाद।
कली सुमन में
नव सुगंध का
वह अदृष्ट आगार।
फल में बीज
बीज में अंकुर
तरुवर का आकार।।
राम रमैया
अमर गूढ़ता
कविता का अनुवाद।
●शुभमस्तु !
25.12.2023●9.00 आ०मा०
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