शनिवार, 23 दिसंबर 2023

नए-पुराने ख़यालात ● [ व्यंग्य ]

 558/2023 

 

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● © व्यंग्यकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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            ख़यालात के विषय में सुना है कि मुख्यतः ये दो प्रकार के होते हैं,पुराने और नए।स्वाभाविक ही है कि पुराने लोगों के ख़यालात पुराने होंगे और नए लोगों के ख़यालात नए।जिस प्रकार पुराने लोगों की लात भी कमजोर हो जाती हैं ,इसलिए वे ज्यादा चलने -फिरने या लातों को ज्यादा चलाने में सक्रिय नहीं रहते। ये उनकी विवशता है तथा समय की आवश्यकता भी है।पुराने की बात ही पुरानी है।नए के सामने पुराने टिक भी कहाँ पाते हैं !यद्यपि वे टिकाऊ अधिक होते हैं।पुराने का नए से मुकाबला भी क्या ! बाप बाप ही रहेगा।भले ही बेटा कुछ भी हो जाए ,किन्तु वह बाप नहीं बन सकता।अपने ओहदे या धन दौलत में वह भले ही बढ़ जाए ,परंतु रहेगा बेटा ही। वह बाप का बाप तो नहीं होगा न?

              ख़यालात मनुष्य की अपनी जागतिक परिस्थतियों और समय की माँग होते हैं।पुराने लोग नए ख़यालात तो अख़्तियार कर सकते हैं ,किन्तु नए लोगों में पुराने ख़यालात आना एक प्रतिष्ठा की बात होगी। सम्भव यह भी है कि नए लोगों में पुराने ख़यालात का प्रादुर्भाव हो जाए। परंतु ऐसा प्रायः नहीं होता। नहीं हो सकता।पुराने लोगों की अधिक संगति करने पर ऐसा होना कोई असंभव कार्य नहीं है। 

               नए ख़यालात नए लोगों की तरह कुछ ज्यादा ही लात चलाते हैं। चलाते ही नहीं, अधिक चला पाने की क्षमता से युक्त भी होते हैं।नया तो नया है। उसका सब कुछ नया है। नया खून, नई-नई रगें, नया दिमाग़,नई मसें,नई आँखें, नई दृष्टि ;फिर क्यों न हो नई सृष्टि। ज्यादा लात चलाना भी खतरे से खाली नहीं है। कभी- कभी अधिक लात -संचालन अपने लिए भी घातक पातक और मातक हो सकता है। इसलिए बिना सोचे -समझे या बिना देखे -भाले लात नहीं चलाने की शिक्षा दी जाती है। और यह शिक्षा भी उन लोगों के द्वारा दी जाती है ,जिनकी लातें पहले ही कमजोर हो चुकी हैं। वे यह सीख इसलिए नहीं देते कि उनकी लातें कमजोर हो चुकी हैं,वरन इसलिए भी देते हैं कि उन्हें अपने नएपन में लातें चलाने का परिपक्व अनुभव भी है। लात -प्रक्षेपण कोई तीर- प्रक्षेपण से कम नहीं है।क्योंकि यदि तीर भी गलत दिशा में चलाया जाए अथवा गलत लक्ष्य पर ही चला दिया जाए, तो ऊर्जा का अनावश्यक अपव्यय ही होता है।पत्थर पर तीर प्रक्षेपण जैसे अकारथ होता है ,ठीक वैसे ही गलत लात - संचलन भी निरर्थक ही होता है। खाँम ख़याली ख़तरनाक ही होती है।इससे दिमाग़ को खुश फहमी नहीं मिलती ।वैसे ही ये आवश्यक नहीं कि जहन में आया हुआ हर ख़्याल ख़ुशनसीब ही हो। 

                 नए ख़यालात के अंदर एक और नए प्रकार के ख़यालात का जन्म होने लगता है। इन ख़यालात को अत्याधुनिक ख़यालात कहा जाता है। अत्याधुनिकता के तंबू के नीचे ख़तरे ही खतरे हैं।जैसे अत्याधुनिकता के वशीभूत होकर देह के सारे कपड़े -लत्ते ही उतार फेंकना।जैसे माघ के कड़े शिशिर की शीत में अत्याधुनिकाओं का सारे गर्म कपड़े स्वेटर कार्डीगन शॉल आदि का उतार फेंकना और एक मकड़ी के जालीनुमा ब्लाउज में सारी रात निकाल देना। अत्याधुनिकता निःसंदेह सराहनीय है। इसके नीचे जाड़े गर्मी बरसात का कोई असर नहीं होता।सामान्य से असामान्य हो जाने का नाम अत्याधुनिकता है।आज अत्याधुनिकता की सूची बहुत लंबी हो चुकी है।खान-पान से लेकर पहनावा ,रहन -सहन, विवाह -शादी,जन्म दिन,विवाहादि की वर्ष गाँठ आदि ऐसा कौन सा क्षेत्र है ,जहाँ अत्याधुनिकता ने अपनी नई - नवेली लात न चलाई हों।अत्याधुनिकता आँखों से अंधी और कर्ण कुहरों से बधिर हो गई है।इसलिए उसे पुराने ख़यालात की लातें तो क्या बातें भी अप्रिय लगती हैं। इसलिए फ़टे हुए जींस और देह दिखाऊ कपड़े उसकी पहचान में शामिल हो गए हैं।अब तो नवाधुनिकाओं को अपना सुघड़ वक्षःस्थल दिखाने में भी कोई आपत्ति नहीं है।इसके लिए दो अंगुल चौड़ी पट्टिका या पीठ दिखाऊ ब्लाउज ही शिष्टाचार की निशानी है। अब जो नारी जितने अधिक कपड़े पहनती है ,वह उतनी ही बैकवर्ड समझी जाती है। ये सब कुछ अति नए ख्यालों की लात का ही परिणाम है।

            एक बात यह भी है कि नया नौ दिन पुराना सौ दिन।किन्तु अत्याधुनिकता के रंग में रंगा हुआ प्राणी नौ दिन नहीं गिनता। वह तो नित्य निरंतर नयापन चाहता है। अपनाता भी है। यही कारण है कि कोई भी नया फैशन ज्यादा दिन नहीं टिकता। यदि टिक ही गया तो कुछ दिन में ओल्ड हो जाएगा।भले हो 'ओल्ड इज गोल्ड' की कहावत कितनी दोहराई जाए ,किन्तु वर्तमान नई पीढ़ी के लिए ओल्ड कदापि गोल्ड नहीं है। उन्हें तो ओल्ड की अहमियत गोल्ड क्या मिट्टी के बराबर भी नहीं है।इसलिए आज है ,वह कल नहीं।और कल वाला परसों तरसौं नहीं। इसी सिद्धांत पर कर्ता द्वारा नारी - मष्तिष्क का निर्माण किया गया है। इसके लिए यह उदाहण पर्याप्त होगा कि अलमारी में भले ही सौ साड़ियाँ ब्लाउज पेटीकोट अथवा अन्य वस्त्राभूषण भरे पड़े हों,किन्तु जब भी कोई भी ऐसा सुअवसर आएगा ,जब उन्हें नई साड़ी आदि धारण करने हों ,तो एक ही जुमला काफ़ी है कि कैसे जाएँ ,मेरे पास तो कोई कपड़ा ही नहीं है। पति या पुरुष के सिर पर इससे बड़ी कौन सी लात होगी।यह मानो उनका दिन रात का रटा हुआ मुहावरा है।जिससे नारी समाज को कभी मुक्ति मिलने वाली नहीं है।यही नए खयालों की नई लात है।इसके सामने सदा ही पुरुष वर्ग की मात है।होती रही है और होती भी रहेगी।जो साड़ी करीना की शादी में पहनी थी ,अब वही नगीना की शादी में कैसे पहनी जा सकती है? एक बार पहनने के बाद वह रिटायर हो गई। अब फिर नई साड़ी ख़रीदवाईये, अन्यथा शादी में ले जाना कैंसिल कराइये।बेचारा पुरुष पति दसियों वर्षों से एक वही पेंट शर्ट सूट पहने जा रहा है। कभी सोचने पर भी अपने लिए एक शर्ट तक नहीं सिलवा पा रहा है। यही पुराने ख्यालातों की लात हैं। जो पुरुष पीठ पर ही करती आघात हैं।इस प्रकार एक ही छत और चार दीवारों के नीचे नए और पुराने ख्यालातों की लातों की बरसात है।आदमी बस आदमी है और सहधर्मिणी नारी जात है।

 ●शुभमस्तु ! 

 23.12.2023● 3.00प०मा०

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