शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

पूस की रात ● [ दोहा ]

 547/2023

      

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●© शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कठिन  पूस  की   रात में, शीतलहर   की  मार।

सता  रही है   देह  को, खग, पशु, जन लाचार।।


सी- सी  कर  चलती  हवा,जमती मुख की बात।

वाणी  भी  अवरुद्ध   हो, जमी पूस   की  रात।।


कुकड़ूकूँ   के  राग  में,  हुआ  शीत का   भोर।

शिशिर  पूस की  रात है, करे पवन भी   शोर।।


भले   रजाई   ओढ़कर,  सोते    हैं सब   लोग।

सजल  पूस   की रात  में,  लगा अनिद्रा    रोग।।


अगियाने   को    घेर   कर,  बैठे  चारों      ओर।

शिशिर पूस की रात का,सुखद सुहाना    भोर।।


रंग  पूस  की  रात  का, किया शीत   ने   सेत।

शीत   लहर  गाने लगी, धुन मादक   समवेत।।


लिया  बया  ने   घोंसला, बना  बेर की   डाल।

कड़ी  पूस की  रात में, जुगनू- ज्योति  जमाल।।


कष्ट  दे  रहा    शीत  में,  विरह  पूस  की  रात।

ज्वाला  बढ़ती   देह  में,  कुहरे  की   बरसात।।


बैठे   ज्वलित   अलाव  पर, होरी गोबर    आज।

सघन  पूस  की  रात  में, मन  है अति  नासाज।।


आओ आलू   भून लें,  रख अलाव की  राख।

प्रखर   पूस की  रात की,बढ़ा रही जो   शाख।।


विरहिन  बैठी  देखती,  कब आए पति     गेह।

बड़ी   पूस   की रात है ,  झर-झर झरता   मेह।।

● शुभमस्तु !


20.12.2023● 12.15प०मा०

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