शनिवार, 9 दिसंबर 2023

उ०प्र०की संस्कृति में लोक उत्सव एवं मानव-मूल्य ● [आलेख ]

 526/2023



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● ©लेखक 

 ● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                  'उत्तर प्रदेश की संस्कृति में लोक उत्सव एवं मानव -मूल्य' विषय पर विचार करने से पूर्व इसमें आए हुए 'संस्कृति' 'लोक उत्सव' एवं तीसरे शब्द 'मानव मूल्य' पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। संसार के मानव मात्र के लिए 'सभ्यता' और 'संस्कृति' ऐसे दो महत्त्वपूर्ण आवरण हैं; जो उसे मानवेतर प्राणियों से भिन्नता प्रदान करते हैं। 'सभ्यता' मानव का वह बाहरी आवरण है,जो उसे रोटी ,कपड़ा और आवास की व्यवस्था करता है तथा उसके जीवन को हर प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है। दूसरी ओर हमारी 'संस्कृति' वह मानवीय सौंदर्य बोधक आवरण है , जिससे उसकी हृदय संबंधी विविध रंगीनियों और भाव सागर का बोध होता है। सभ्यता और संस्कृति दोनों ही मानव मात्र के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी हैं। 

                जब मानव अपनी सभ्यतागत आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है ,तो जीवन को सौंदर्य और सुषमा पूर्ण बनाने के लिए विभिन्न त्यौहार, पर्व, लोक उत्सव, नाच- गान, नाटक आदि का आयोजन करके अपनी संस्कृति को समृद्ध बनाने में संलग्न हो जाता है। 

                   देश के समस्त राज्यों में उत्तर प्रदेश आबादी,क्षेत्रफल,सभ्यता,संस्कृति ,समृद्धि,प्राकृतिक सौंदर्य, भूगोल आदि अनेक दृष्टियों से उत्तर भारत का विशाल राज्य है। यह राज्य अपनी विविध परंपराओं और समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। इसकी संस्कृति के अंतर्गत उसके पर्व त्यौहार और विभिन्न मेले हैं।इनसे राज्य की विविधता और समृद्ध संस्कृति का बोध होता है। इन मेलों के कारण ही यहाँ मात्र देश के ही नहीं विदेशों के पर्यटकों का आगमन होता है ।इन मेलों के आयोजन से प्रदेश की जीवंत और रंगीन संस्कृति का बोध होता है। जानकारी के लिए कुछ प्रमुख मेलों का विवेचन करना समीचीन प्रतीत होता है। 

 1.कुम्भ मेला- यह मेला प्रत्येक बारह वर्षों में प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजित होता है।यह विश्व के सबसे महान धार्मिक समरोहों में से एक है।इसमें देश और विदेश के लाखों तीर्थयात्री संगम स्नान के लिए आते हैं। 

 2.बटेश्वर मेला- आगरा जनपद में आगरा और फ़िरोज़ाबाद के समीप यमुना नदी के तट पर प्रसिद्ध तीर्थस्थल बटेश्वर है। यहाँ पर भगवान शंकर के 101 मंदिर हैं। यहाँ सावन के महीने में हजारों कावड़ियों द्वारा गङ्गा जी से लाई गई कांवड़ों द्वारा पवित्र गंगा जल चढ़ाया जाता है।नवम्बर में वार्षिक उत्सव का आयोजन होता है।जिसमें पशुओं की खरीद फ़रोख़्त की जाती है। कई सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ इस मेले का मुख्य आकर्षण हैं। यहीं पर श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की माता का वह मंदिर भी हैं ,जहाँ वे नित्य प्रति पूजा अर्चना करने के लिए जाती थीं।कंस की मल्ल कला विद्या की स्थली 'कंस कगार' भी यहीं देखी जा सकती है। 

 3.गढ़ मुक्तेश्वर मेला- प्रति वर्ष कार्तिक मास में मेरठ के समीप हापुड़ में भगवान शिव के सम्मानार्थ यह मेला लगता है।इसका प्रमुख आकर्षण गङ्गा तट पर स्थित एक विशाल शिव लिंग है। 

 4.ढाई घाट मेला- शाहजहाँपुर में कार्तिक मास में ढाई घाट मेले का आयोजन किया जाता है। 

 5.मकर संक्रांति मेला- यह फर्रुखाबाद में जनवरी में आयोजित होने वाला वार्षिक आयोजन है। इसे मकर संक्रांति मेला कहा जाता है और पतंग उड़ाने जैसी गतिविधियों को प्रमुखता दी जाती है। 

 6.गोला गोकर्णनाथ मेला- लखीमपुर खीरी में प्रतिवर्ष इस मेले का आयोजन नवम्बर माह में किया जाता है। इसमें शंकर भगवान की पूजा अर्चना को प्रमुखता दी जाती है। 

 7.बाला सुंदरी मेला- प्रति वर्ष चैत्र मास में यह मेला अनूपशहर में वार्षिक उत्सव के रूप में आयोजित होता है। 8.कालिंजर मेला- यह मेला प्रति वर्ष जनवरी में आयोजित होता है।यह एक वार्षिकोत्सव है ।बाँदा में आयोजित होने वाले इस मेले का प्रेरणा स्रोत कालिंजर का किला है। यह भी प्रदेश की विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रकाशित करता है।

            यों तो उत्तर प्रदेश का कोई कस्बा या नगर अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से शून्य नहीं है ,इसलिए इनके अतिरिक्त भी नौचंदी मेला(मेरठ), देव मेला(बाराबंकी), माकनपुर मेला ( फर्रुखाबाद),लखनऊ महोत्सव(लखनऊ) वाराणसी पर्यटन उत्सव(वाराणसी),गङ्गा महोत्सव (वाराणसी), त्रिवेणी महोत्सव(प्रयागराज),कैलाश मेला (अगरा), रामायण मेला(चित्रकूट),बरसाने का होली उत्सव (मथुरा), कबीर मेला (मगहर/संत कबीर नगर), परिक्रमा मेला (अयोध्या), गिरिराज परिक्रमा मेला (गोवर्धन), सोरों मेला (सोरों कासगंज),आयुर्वेद महोत्सव (झाँसी), बिठूर गंगा महोत्सव (कानपुर),कजरी महोत्सव( महोबा), खिचड़ी मेला (गोरखपुर),राम बरात(आगरा), राम नवमी मेला (अयोध्या)आदि हजारों छोटे -बड़ें मेलों का आयोजन पूरे उत्तर प्रदेश में समय -समय पर किया जाता है। 

           उत्तर प्रदेश के लोक उत्सवों के अन्तर्गत मेला आयोजन के साथ -साथ विभिन्न त्यौहारों का भी विशेष महत्त्व है।उत्तर प्रदेश की धरती राम,कृष्ण और बुद्घ की है। यहाँ की जाज्वल्यमान संस्कृति में स्थापत्य कला के सैकड़ों प्रतिदर्श देखने को मिलते हैं। उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है ,जिसने रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य संसार के समक्ष प्रस्तुत किये हैं। यहाँ पर होली ,दीवाली,विजय दशमी(दशहरा),मकर संक्रांति, रक्षाबंधन,श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, राम नवमी, गोवर्धन पूजा, भैया दूज ,देवोत्थान एकादशी आदि अनेक पर्वों और त्यौहारों को उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।समय -समय पर श्रीकृष्ण की रास लीला और राम लीला के आयोजन प्रदेश की सांस्कृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरते हैं।लोक परंपरा के अंतर्गत शास्त्रीय संगीत, लोक नृत्य और नाटकों के आयोजन भी प्रदेश की संस्कृति में चार चाँद लगाने में कोर कसर नहीं छोड़ते । 

           प्रदेश की व्यापक संस्कृति के अंतर्गत उसके लोक उत्सव ,मेलों और त्यौहारों की चर्चा करने के बाद उसके मूल्यों पर दृष्टिपात करना भी आवश्यक हो जाता है। मानव है तो उसके कुछ मूल्य भी हैं।जिन्हें 'जीवन -मूल्य' की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। समग्र रूप से देखें तो जीवन जीने के लिए धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष ये चार जीवन- मूल्य हैं।जिन्हें हम 1.धार्मिक 2.भौतिक या आर्थिक 3.सामाजिक 4.सांस्कृतिक और 5.आध्यात्मिक जीवन मूल्य के रूप में भी वर्गीकृत कर सकते हैं। जीवन की सुरक्षा और संरक्षा हमारे सभी जीवन मूल्यों का लक्ष्य है। इन सभी में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है मानवता । यदि मानव जाति में मानवता ही नहीं बचे तो कोई भी मूल्य दो कौड़ी का नहीं है।

        अपने लोक जीवन में हम जितने पर्व, त्यौहार, मेले, गीत, संगीत, साहित्य, लोक कला,प्रथाओं, परंपराओं ,आचार-व्यवहार,रीति-रिवाज,मान्यताओं आदि का अनुशीलन करते हैं ,उन सबमें हमारे जीवन मूल्य इस प्रकार पिरोए हुए रहते हैं ,जैसे से एक बारीक सूत्र में फूलों की माला। जैसे सूत्र के भंग होने पर माला टूट जाती है , वैसे ही जीवन मूल्यों की देहरी लाँघते ही मानव मानव नहीं रह जाता। फिर मनुष्य और पशु में कोई विभेद नहीं रहता।सभी मेले और लोक पर्व मनुष्य को मनुष्य होना सिखाते हैं।वे उनका अवमूल्यन नहीं कर सकते। हिंसा, क्रूरता,अत्याचार, बलात्कर, छीना झपटी जैसी बातों के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं है। 

                 संक्षेप में कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश भारतीय संस्कृति का एक ऐसा वृहद प्रांगण है ,जिसमें मानवीय जीवन मूल्यों की परिधि में यहाँ की संस्कृति और सभ्यता पल्लवित और पुष्पित हो रही है।विविध लोक उत्सवों, मेलों,त्यौहारों और मान्यताओं की गोद में यहाँ की संस्कृति सदा से हरी भरी और उल्लसित है। आइए हम सभी उत्तर प्रदेश की गरिमामई संस्कृति का आदर्श स्वरूप जानें और मानवीय मूल्यों की संस्थापना में अपना अमूल्य योगदान करें। धन्य हैं हम सभी जिन्होंने इस राम ,कृष्ण और बुद्ध की पवित्र धरा पर जन्म लिया और इसकी रज में लोटपोट कर बड़े हुए हैं। 

●शुभमस्तु। 

 09.12.2023●3.00प०मा० 


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