शनिवार, 30 दिसंबर 2023

राम रस प्रीति ● [ गीत ]

 584/2023

 

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्

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राम रस प्रीति

जगा जड़ जीव

सुन अनहद ध्वनि नाद।


अलख राम का

घण्टा बजता

गूँजा चेतन गीत।

कब तक यों ही

करे अनसुना

घड़ियाँ जाएँ बीत।।


किस निद्रा में

अविचल सोया

लेता नीरस - स्वाद।


षटरस लेता

निन्दारस रत

खबर न अपनी नेंक।

सोने की तू

कथरी सोया

क्यों न दे रहा फेंक!!


भरी हृदय में

गलित गंदगी

करता नित अनुवाद।


खोट खोजता

इसके उसके

देखा  गला  न झाँक।

लिखा हुआ है

आना जाना

कब तक पक्का आँक।।


कच्छप जैसी

ग्रीवा भींचे

छिपा हुआ किस माद।


●शुभमस्तु !


27.12.2023● 6.00आ०मा०

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