545/2023
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सिकुड़ ठंड में
घिरकर बैठे
जलता एक अलाव।
लोग आठ- दस
हुए इकट्ठे
लकड़ी - उपले ढूंढ़।
बैठे घेरा
बना एक वे
बाँधे गमछा मूँढ़।।
आँच लगाई
तेज जल उठी
बढ़ता ताप प्रभाव।
कोई डाले
कुरसी बैठा
कोई खड़ा जमीन।
सटकर बैठे
सब आपस में
करते मेख व मीन।।
सुना रहा है
कोई घर की
कोई आलू भाव।
छाया कुहरा
सित चादर-सा
धुँधला दिखता गाँव।
जूते मोजे
पहन सजे हैं
ग्राम्य जनों के पाँव।।
कहने में दो
बात हृदय की
करते नहीं दुराव।
● शुभमस्तु !
19.12.2023●8.00आ०मा०
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