236/2025
[ जल,नदी,तालाब,तृषित,मानसून]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
जल जीवन का प्राण है,पंच तत्त्व में एक।
जीवन हो या सृष्टि में,जल ही बुद्धि विवेक।।
जेठ मास में भानु का,बढ़ता तेज प्रताप।
जल के प्यासे जीव हैं,करें कीर खग जाप।।
नदी दे रही नित्य ही,फिर भी नदिया नाम।
छपवाते अखबार में, लोग नाम बिन काम।।
गंगा यमुना नित्य बह, करतीं जग कल्याण।
नदी नहाएँ जीव जड़, बचा रहीं हैं प्राण।।
सूख गए तालाब भी,सरि की पतली धार।
जेठ मास तपने लगा, वर्षा का उपहार।।
मेढक मछली जंतु जल,व्याकुल हैं दिन-रात।
विवश सभी तालाब हैं,बिना हुए बरसात।।
तृषित चिरैया डाल पर,मिली न जल की बूँद।
चोंच उठा कर शून्य में,भजती प्रभु दृग मूँद।।
तृषित जीव की प्यास को,करता है जो तृप्त।
पुण्य भाग मिलता उसे, जीव जंतु संतप्त।।
मानसून आए नहीं, गिरी न नभ से बूँद।
राम-राम जन जप रहे,तृषित नयन को मूँद।।
अभी नौतपा दूर हैं, तपने को भरपूर।
चरम ग्रीष्म के ताप से,मानसून है दूर।।
एक में सब
मानसून आए नहीं, शुष्क नदी तालाब।
तृषित बिना जल- बिंदु के, उतर गई मुख-आब।।
शुभमस्तु!
21.05.2025● 6.30आ०मा०
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6:41 am
22/5/2025
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