बुधवार, 25 जून 2025

धुले दूध के सारे [ नवगीत ]

 274/2025


           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नेताओं को 

कोस रहे क्यों

धुले दूध के सारे।


राजनीति का

धंधा ऐसा

सगा न इनको कोई

नहीं देश से

लेना - देना

खरपतवारें  बोई

नागफनी

सत्यानाशी के

सुमन खिले हैं न्यारे।


आग लगाकर

शमन कराना

इनका सदा स्वभाव

विष रस मिला

शहद छिड़काना

भरता जन के घाव

समझ न लेना

अपना इनको

होंगे कभी हमारे।


ये भी तो हैं

श्रेष्ठ नागरिक

करना आत्म विकास

यही धर्म है

यही कर्म है

फैला रहे उजास

जनता देख 

रही है दिन में

अंबर में बहु तारे।


शुभमस्तु !


24.06.2025●11.45आ०मा०

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