262/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अन बाँची किताब
ये दुनिया
अब तक नहीं पढ़ी।
कहीं नाचतीं
लहर खुशी की
कहीं रुदन का रेला
कहीं जन्म
किलकारी भरता
कहीं मौत का खेला
चाल समय की
कौन जानता
वह किस ओर बढ़ी।
कहाँ किसे
क्या कुछ हो जाए
लेश न मानव जाने
ज्योतिष पंडित
खड़े ठगे से
पहुँच गए वे थाने
किस्मत की
वह रूढ़ लेखनी
किसके हाथ गढ़ी।
सवित्रियाँ
मिथक अब थोथा
सत्यवान को घात
सोनम जैसी
क्रूर नारियाँ
बिफर हुईं बदजात
अंध वासना
प्रेम नहीं है
तू जा जहाँ चढ़ी।
शुभमस्तु !
19.06.2025●11.45आ०मा०
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