मंगलवार, 24 जून 2025

दशमांशिनी भी नहीं [अतुकांतिका ]

 261/2025

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दशमांशिनी की भी 

नहीं अधिकारिणी

वे अर्धांगिनी संभव नहीं,

भगवान ही बचाए

'ऐसियों' से नए युवाओं को।


झूठी है पंडित की पत्रिका

झूठे हैं हवन पूजा पाठ

अंधी है उनकी दृष्टि

जिन्हें  मार गया काठ।


देह और चमड़ी देखकर

पहचानना चरित्र

सर्वथा बेमानी है,

पति के प्रति भरा है

कितना दुर्भाव

यही बात तो जाननी है।


किसी के मन को

 पढ़ा है  किसने?

चरित्र -मापन का 

मीटर नहीं बना,

हवस की भिखारिनों का

कोई महल नहीं खड़ा।


जिनके नाम से भी 

दुष्कर्म और पाप दुर्गंधाये

उनका नाम कविता में

लिखकर कवि क्यों

लेखनी दूषित कराए!


अरी नारी

हमने तो पहले ही

 मान लिया था

कि नर से भारी नारी

फिर आज क्यों

तू चला रही 

पुरुष वर्ग पर छुरी 

जहर आरी।


भूलवश विधाता ने

तुझे चुड़ैल से

नारी बना दिया,

तू जन्म जन्मांतर 

चुड़ैल ही रहे

कर्म के भोगों का दंड सहे।


शुभमस्तु !


19.06.2025●8.45आ०मा०

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