322/2025
समांत :इया
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बहता रहे नेह का दरिया।
जिसने दिया वही है नदिया।।
युद्धभूमि यह विश्व बना है।
सभी उधेड़ें सबका बखिया।।
कुछ तो नींद चैन की लेते।
लगा शीश के नीचे तकिया।।
कोयल नहीं कूकती तरु पर।
झूले नहीं शून्य है बगिया।।
माताएँ निर्मम अब देखो।
संतति को अब मिले न कनिया।।
होरी इंतजार में बैठा।
कब आएगी उसकी धनिया।।
'शुभम्' दे रहा बदबू गोबर।
सोनम हैं कलियुग की झुनिया।
शुभमस्तु !
30.06.2025●12.45 पा०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें