235/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नंगे पाँव किधर जाते हो
हे बालक! रसलीन।
तन पर मैले फटे वसन धर
बिखरे सिर के बाल
झोला एक पीठ पर टाँगे
हृदय रहा है साल
दुर्दिन के झटकों ने तेरा
चैन लिया है छीन।
तुम्हें जरूरत थी बस्ते की
कागज कलम दवात
लगता कचरा बीन रहे हो
यही मिली सौगात ?
मात-पिता का नेह नहीं है
बने हुए हो दीन।
'शुभम्' देश के कर्णधार तुम
तुम ही अटल भविष्य
यज्ञ पूर्ण करना है तुमको
दाता तुम्हीं हविष्य
आओ चलो चलें विद्यालय
शिक्षा में हो लीन।
शुभमस्तु!
20.05.2025●9.30आ०मा०
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