267/ 2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब अपनी ही रग
दबने लगती
तब दर्द बहुत ही होता है।
सच बात
सभी को चुभती है
झूठों की करें हिमायत वे
अन्याय क्रूरता दानवता
कितने अच्छे
सब जान रहे
अपराधी नर या नारी हो
जब दबती रग
दिल रोता है।
चापल्य अनृत माया साहस
अविवेक
सभी ये मिथ्या हैं
जिनके हैं हीन चरित्र हृदय
हत्याएँ
उनकी कृत्या हैं
नारी तो सदा सत्य होती
बस पुरुष
गलत नित होता है।
इतिहास बताए
आज तलक
नारी सब दूध धुली होतीं
होते हैं केवल पुरुष गलत
घड़ियाली जल से
दृग धोतीं
नारी दृग जल से
किले ढहे
श्मशान महल में सोता है।
शुभमस्तु !
20.06.2025●2.00प०मा०
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