256/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
गीतकार अपने को कहते
अन्यों को तुकबंद।
कवियों के गिरोह सक्रिय हैं
फैलाते दुर्भाव
वाह ! वाह!! अपनी ही लूटें
नवागतों को घाव
काव्य प्रणेता घोषित करते
बना रहे नव छंद।
अपनी छपे किताब
प्रशंसा के चाहें उपहार
अन्य किसी की छप जाए तो
फूटें क्रोध गुबार
कहलाते वे ईश समीक्षक
खोद काव्य के कंद।
नव कवियों की करें उपेक्षा
चाह रहे सम्मान
बिंदी की करते शत चिंदी
बीस पंसेरी धान
कोई और न बढ़ने पाए
खोदे पथ में खंद।
शुभमस्तु !
10.06.2025●11.00आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें