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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
धूप धरा का शुभ वरदान।
सूरज दादा बड़े महान।।
जाड़ों में हम धूप सेंकते।
गर्म रजाई दूर फेंकते।।
जीवन देती मातु समान।
धूप धरा का शुभ वरदान।।
धूप निकलती विशद उजाला।
करता भू पर खेल निराला।।
खेत बाग वन या मैदान।
धूप धरा का शुभ वरदान।।
जेठ मास में सही न जाती।
झुलसें पेड़ कली मुरझाती।।
बहे पसीना श्रमिक किसान।
धूप धरा का शुभ वरदान।।
शुल्क नहीं किंचित लेता है।
फिर भी भानु धूप देता है।।
समझो करो नहीं अपमान।
धूप धरा का शुभ वरदान।।
धूप स्वच्छता तन में लाती।
दूषण में पावनता भाती।।
दिन में धूप करे निज गान।
धूप धरा का शुभ वरदान।।
शुभमस्तु !
28.06.2025●7.00आ०मा०
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