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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
यह वसुधा भू माँ कहलाती।
वैसा ही दायित्व निभाती।।
जब हम जन्मे गोद उठाए।
हुआ - हुआ कर हम चिल्लाए।।
अपनी रज को हमें लगाती।
यह वसुधा भू माँ कहलाती।।
सबसे पहले लाड़ लड़ाए।
रोए जाएँ तो बहलाए।।
चुप जा - चुप जा कह मुस्काती।
यह वसुधा भू माँ कहलाती।।
धरती को हम स्वच्छ बनाएँ।
झाड़ - पौंछ कर के चमकाएं।।
पल भर को भी नहीं सताती।
यह वसुधा भू माँ कहलाती।।
खोदें गर्त कूप बनवाएं।
माटी खोदें उसे सताएँ।।
तो भी मौन रहे सह जाती।
यह वसुधा भू माँ कहलाती।।
धरती की हम संतति सारी।
स्वच्छ रखें यह जिम्मेदारी।।
बढ़ता भार न कभी अघाती।
यह वसुधा भू माँ कहलाती।।
शुभमस्तु !
28.06.2025● 6.00आ०मा०
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