बुधवार, 25 जून 2025

सारा 'राज' छिपा है! [ नवगीत ]

 278/2025


         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कौन जानता

घूँघट के पट

सारा 'राज' छिपा है।


सात भाँवरें

सात वचन भी

अर्थ यहाँ खो बैठे

उड़ता इश्क परिंदा

नभ में

मंत्र हवन के ऐण्ठे

मन का चोर

लाल साड़ी में

साजे साज छिपा है।


कामाख्या के

दर्शन झूठे

झूठी ब्याह -कहानी

मेघालय के

उच्च शृंग से

रखी न शेष निशानी

कौन जानता

तिया- चरित में

हवसी बाज छिपा है।


पुरुष भाग्य को

कौन जानता

अनजाना नारि -चरित्र

कहीं सूँघती

पुरुष देह को

कहीं  छिड़कती   इत्र

मौर विसर्जित

करती पति का

मन में ताज छिपा है।


शुभमस्तु !


25.06.2025●2.45प०मा०

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