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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
गंगा यमुना शुचि सरिताएँ।
इनकी रक्षा करें बचाएँ।।
मूर्ति पूजते हिंदू सारे।
करें विसर्जन नदी किनारे।।
नहीं नदी में उन्हें सिराएँ।
इनकी रक्षा करें बचाएँ।।
रंग रसायन जल में घुलते।
मछली मेढक कछुए मरते।।
जल जीवों के प्राण न जाएँ ।
इनकी रक्षा करें बचाएँ।।
सरिता जल पीते नर - नारी।
विष से फैल रहीं बीमारी।।
नहीं लाश सरि - नीर बहाएँ।
इनकी रक्षा करें बचाएँ।।
धोएँ नहीं वस्त्र भी गदले।
अगर नहीं मानव जो सँभले।।
असमय मरें और पछताएँ।
इनकी रक्षा करें बचाएँ।।
सरि का मैल सिंधु जो पाए।
दूषण से खारी हो जाए।।
आओ सागर मधुर बनाएँ।
इनकी रक्षा करें बचाएँ।।
शुभमस्तु !
26.06.2025●11.45 आ०मा०
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