मंगलवार, 24 जून 2025

एक समान नहीं होतीं [ नवगीत ]

 


263/2025

    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


एक समान नहीं होतीं

काली पीली धारियाँ।


किसमें कितनी कालोंच है

कितनी है सफेदी

उघाड़कर देखना असंभव

ब्याह मंडप की वेदी

सवाल खड़े कर रहीं हैं

सोनमों -सी नारियाँ।


मत मरना

मुस्कानों की मुस्कान पर

चल रहा है खेल इश्किया

बसाना नहीं जो घर

क्या सबक लेंगीं अब

भविष्य की कुमारियाँ।


चरित्र के पन्ने

पढ़ पाते नहीं माता-पिता

करोड़ों में एक 

मिलती हैं मन की  सिता

ज्यों किसी सीप में

मोती की दुश्वारियां।


शुभमस्तु !


19.06.2025● 12.15प०मा०

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[1:15 pm, 19/6/2025] DR  BHAGWAT SWAROOP: 

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