242/2025
[नौतपा,लूक,ज्वाला,धरा,ताप]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
यौवन को मत जानिए, जीवन का मधुमास।
समझ नौतपा ही जिएँ,सँभल-सँभल लें श्वास।।
नौ दिन तपता नौतपा, सौ दिन शुभ बरसात।
इंगित है भवितव्य का ,फैले भानु - बिसात।।
जेठ मास तपने लगा, चलें लूक अति तप्त।
लगता जीवन जंतु को,समय हुआ अभिशप्त।।
लिए लूक दिनकर चले,अपने कर में थाम।
लगता खग मृग जंतु को, समय हुआ है वाम।।
ज्वाला तप्त निदाघ की, असहनीय दिन-रात।
लगता सूरज देवता, लगा रहे हैं घात।।
अवनी है सदृश तवा, ज्वाला की बरसात।
नित अंबर से हो रही,भानु लगाए घात।।
सूख गए तालाब भी,क्षीण नदी की धार।
धरा - अधर सूखे हुए, मछली मरीं हजार।।
धरा धाम में जीव ये, करता कर्म अनेक।
जैसी जिसकी बुद्धि है,जैसा जगे विवेक।।
पंच तत्त्व में ताप का,अपना एक महत्त्व।
क्षिति जल गगन समीर भी,बाँट रहे निज सत्त्व।।
ताप - तेज से देह में, पाचन हो दिन - रात।
सूरज के अस्तित्त्व से, जग में संध्या-प्रात।।
एक में सब
तपें नौतपा जेठ में,बढ़े धरा का ताप।
लिए लूक रवि चल दिए, ज्वाला की क्या माप!!
शुभमस्तु !
28.05.2025●5.00आ०मा०
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