शुक्रवार, 27 जून 2025

मच्छर हमें नहीं भाते हैं [ बालगीत ]

 288/2025


       

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मच्छर       हमें     नहीं   भाते    हैं।

दंशित  हो    हम   खुजलाते     हैं।।


मिलें    गंदगी     में     वे      सारे।

नाले     में      पनपें       बजमारे।।

तन    को    काट     सुजाते      हैं।

मच्छर     हमें     नहीं   भाते    हैं।।


नहीं    गंदगी     करनी     घर    में।

रखें  स्वच्छता   ज्यों    मंदिर    में।।

मलेरिया     ज्वर  वे      लाते     हैं।

मच्छर   हमें     नहीं     भाते     हैं।।


अंधकार       में    पनपा     करते।

पड़ें    रसायन    कभी   न  मरते।।

बारह       मास        सताते      हैं।

मच्छर    हमें    नहीं     भाते    हैं।।


कुछ    ऐसा     अभियान    चलाएँ।

मच्छर रहें    न      हमें       सताएँ।।

पीते         रक्त          सिहाते     हैं।

मच्छर  हमें     नहीं      भाते     हैं।।


मच्छरदानी       भले           लगाएँ।

अंदर   तक   मच्छर    घुस   जाएँ।।

लगता     वे       गीत     सुनाते   हैं।

मच्छर     हमें      नहीं    भाते   हैं।।


शुभमस्तु !


27.06.2025● 9.00आ० मा०

                  ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...