शुक्रवार, 27 जून 2025

जहाँ- जहाँ पर मानव जाए [ बालगीत ]

 294/ 2025

        

 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जहाँ -  जहाँ    पर   मानव   जाए।

कचरा     वहाँ  -   वहाँ     फैलाए।।


हों     पर्वत    की    ऊँची     वादी।

सागर   बीच     खोज    आजादी।।

पॉलीथिन        रैपर       छितराए।

जहाँ  - जहाँ  पर    मानव   जाए।।


हिलकोरे     सागर      में    भरता।

खाता  -  पीता  उछल   विचरता।।

नहीं      हरकतों     में      शरमाए।

जहाँ - जहाँ   पर   मानव    जाए।।


पानी    की       बोतलें     फेंकता।

नग्न  देह   से    नयन     सेंकता।।

मुंबई     गोवा      बीच     सिधाए।

जहाँ  - जहाँ    पर    मानव  जाए।।


अल्कोहल   की     शीशी   खाली।

रम ह्विस्की   से  शान   सजा  ली।।

नैतिकता     चूल्हे        में     जाए।

जहाँ -  जहाँ   पर   मानव   जाए।।


आती   हैं    जब    सिंधु    सुनामी।

तब न   सोचता    मानव    कामी।।

बला  अन्य  के   सिर   पर   लाए।

जहाँ -  जहाँ    पर    मानव  जाए।।


शुभमस्तु !


27.06.2025●3.00प०मा०

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