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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जहाँ - जहाँ पर मानव जाए।
कचरा वहाँ - वहाँ फैलाए।।
हों पर्वत की ऊँची वादी।
सागर बीच खोज आजादी।।
पॉलीथिन रैपर छितराए।
जहाँ - जहाँ पर मानव जाए।।
हिलकोरे सागर में भरता।
खाता - पीता उछल विचरता।।
नहीं हरकतों में शरमाए।
जहाँ - जहाँ पर मानव जाए।।
पानी की बोतलें फेंकता।
नग्न देह से नयन सेंकता।।
मुंबई गोवा बीच सिधाए।
जहाँ - जहाँ पर मानव जाए।।
अल्कोहल की शीशी खाली।
रम ह्विस्की से शान सजा ली।।
नैतिकता चूल्हे में जाए।
जहाँ - जहाँ पर मानव जाए।।
आती हैं जब सिंधु सुनामी।
तब न सोचता मानव कामी।।
बला अन्य के सिर पर लाए।
जहाँ - जहाँ पर मानव जाए।।
शुभमस्तु !
27.06.2025●3.00प०मा०
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