265/ 2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब घन नभ में छा जाते हैं।
वे आशा नई जगाते हैं।।
तपती है गर्मी में धरती।
फटीं बिवाई विचलित करती।।
घन छाया को उपजाते हैं।
जब घन नभ में छा जाते हैं।।
जब बरसें बादल से बूँदें।
हम सब बालक उछलें कूदें।।
हम नाच - नाच हर्षाते हैं।
जब घन नभ में छा जाते हैं।।
भरते आँगन भरतीं गलियाँ।
खेलें पकड़ -पकड़ गलबहियाँ।।
हम रुक न घरों में पाते हैं।
जब घन नभ में छा जाते हैं।।
बहतीं मोरी और पनारे।
नंग - धड़ंग दौड़ते सारे।।
टपके टपका हम खाते हैं।
जब घन नभ में छा जाते हैं।।
मन में सभी किसान मगन हैं।
खेती की लग रही लगन हैं।।
'शुभम्' गीत हम सब गाते हैं।
जब घन नभ में छा जाते हैं।।
शुभमस्तु !
19.05.2025● 4.00प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें