232/2025
[अहिंसा,निर्वाण,सिद्धार्थ,तथागत,बुद्ध]
*©शब्दकार*
*डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्*
_सब में एक_
दानवता बढ़ने लगी, मनुज हुआ है क्रूर।
शांति *अहिंसा* चाहिए, तभी दिखेगा नूर।।
दिया बुद्ध ने विश्व को, एक अटल संदेश।
सदा *अहिंसा* श्रेष्ठ है,हटें नहीं लवलेश।।
सत्य धर्म की राह पर,चलना है अनिवार्य।
सहज तभी *निर्वाण* है,कर अष्टांग सुकार्य।।
कठिन तपस्या कर्म से,प्राप्त किया *निर्वाण*।
बुद्ध तपस्वी ने दिए,सुखा गात निज प्राण।।
प्रण हो यदि *सिद्धार्थ* -सा,नहीं असंभव लक्ष्य।
रहें सात्वकी वृत्तियाँ, खाना नहीं अभक्ष्य।।
शुद्धोधन के पुत्र का, एक नाम *सिद्धार्थ*।
सही अर्थ में सिद्ध है, किया जगत-परमार्थ।।
'ऐसा ही है है वही', वही *तथागत* बुद्ध।
राग - द्वेष से है परे, नहीं किसी से क्रुद्ध।।
लक्ष्य उच्चतम प्राप्त कर, बने *तथागत* बुद्ध।
शांति अहिंसा मंत्र से,जन मानस कर शुद्ध।।
*बुद्ध* नवम अवतार हैं, धरे तपस्वी वेश।
राजपाट गृह त्यागकर, दिया अमर संदेश।।
तन- मन से जो शुद्ध है,बने सफल वह *बुद्ध*।
सत पथ उसका लक्ष्य है,विरत करे जो युद्ध।।
_एक में सब_
*बुद्ध तथागत* ने किया,नाम सिद्ध *सिद्धार्थ*।
तप की अपनी शक्ति से,जगती का परमार्थ।।
शुभमस्तु !
14.05.2025●5.15आ०मा०
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