मंगलवार, 24 जून 2025

दोहा दृश्य [ दोहा ]

 257/2025

                 

       [बेलन,मट्ठा,घास,रबड़ी,बटेर]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                      सब में एक

बेलन - चकला  की  बड़ी, जोड़ी है अनमोल।

बनें     रसोई    में   सदा,  पूड़ी   रोटी   गोल।।

बेलन की  महिमा  बड़ी,बहुविध उसके काम।

कभी  रोटियाँ  बेलता,  कभी अस्त्र बदनाम।।


मट्ठा   गुणकारी   बड़ा, सेहत  का   सरताज।

पाचन को  मजबूत कर,सजे उदर का साज।।

देवों   को   दुर्लभ  वहाँ,  गोरस मट्ठा   नित्य।

देवलोक  से   भूमि  पर, आते सह औचित्य।।


यहाँ वहाँ  उगती  सदा,हरी - हरी नव घास।

चौलाई  या  दूब  हो,   सेहत   का अनुप्रास।।

आया विपदा काल  तो, राणा  ने खा  घास।

साहस  को   जिंदा  रखा, छोड़ा नहीं  प्रयास।।


अपच गैस लू को हरे,  रबड़ी  भर   माधुर्य।

शीतल और  सुपाच्य है,ग्रीष्म  काल में  वर्य।।

रबड़ी  मधुर  जलेबियाँ, स्वाद भरे  मिष्ठान्न।

घेवर  श्रावण   में सजे,  करे   कढ़ाई   छन्न।।


तीतर   और बटेर  की, वन में सुमधुर  गूँज।

पड़े  सुनाई  झाड़  में,कास  दाब  या   मूँज।।

उड़  सकती ऊँचा नहीं, वन की विहग बटेर।

मिल जाएँ  यदि  कीट तो,भक्षण में नति देर।।


                  एक में सब

मिलते  नहीं बटेर  को,रबड़ी मट्ठा   घास।

बेलन  की  पूड़ी  नहीं,रहती बड़ी उदास।।


शुभमस्तु !


11.06.2025●5.30 आ०मा०

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