253/2025
समांत : अले
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 14
मात्रा पतन : शून्य
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सभी न होते मनुज भले।
भले - भले ही गए छले।।
फसलें उगतीं खेतों में।
नहीं उगाते हैं गमले।।
पत्नी बैठी चिंता लीन।
पति लौटे नहिं साँझ ढले।।
बुरे कर्म का दुष्परिणाम।
कहे हवन में हाथ जले।।
भारत ऐसा देश विमूढ़।
आस्तीन में साँप पले।।
देशद्रोह जन यहाँ करे।
नहीं छोड़ना शेष गले।।
'शुभम् खून का बदला खून।
कुचलें अरि को पाँव तले।।
शुभमस्तु !
08.06.2025●10.45प0मा0
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