बुधवार, 4 जून 2025

धर्म पूछकर हनता जन को [सजल]

 245/2025

  

समांत         : अण

पदांत          : में

मात्राभार      :16

मात्रा पतन    :शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


झोंक   दिया   है   भारत    रण   में।

मारेंगे  उस    अरि   को    क्षण  में।।


धर्म     पूछकर    हनता   जन   को।

धर्म   बता हम    मारें      प्रण   में।।


क्यों   भूलेंगे      पहलगाम      हम।

चर्चा     यही     रहे   जनगण    में।।


अणुबम     की    धमकी   देता   है।

पाक     मिला   देंगे  रज  कण  में।।


आँख दिखा   मत   धमकी   मत दे।

दाँव   लगा   दें    तुझको  पण  में।।


नहीं   बाप    को   बाप   समझता।

नहीं     बचेगा      बम - वर्षण  में।।


'शुभम्'      कटोरा    खाली    तेरा।

झाँक    चेहरा  निज   दर्पण    में।।


शुभमस्तु !


02.06.2025●9.00 आ०मा०

                  ●●●

246/2025

  झोंक दिया है भारत रण में

                 [ गीतिका ]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


झोंक   दिया   है   भारत    रण   में।

मारेंगे  उस    अरि   को    क्षण  में।।


धर्म     पूछकर    हनता   जन   को,

धर्म   बता हम    मारें      प्रण   में।


क्यों   भूलेंगे      पहलगाम      हम,

चर्चा     यही     रहे   जनगण    में।


अणुबम     की    धमकी   देता   है,

पाक     मिला   देंगे  रज  कण  में।


आँख दिखा   मत   धमकी   मत दे,

दाँव   लगा   दें    तुझको  पण  में।


नहीं   बाप    को   बाप   समझता,

नहीं     बचेगा      बम - वर्षण  में।


'शुभम्'      कटोरा    खाली    तेरा,

झाँक    चेहरा  निज   दर्पण    में।


शुभमस्तु !


02.06.2025●9.00 आ०मा०

                  ●●●

247/2025 

      फटीं बिवाई धरती माँ की

                     [ गीत ]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फटीं बिवाई धरती माँ की

गिरी न जल की बूँद।


चिंतातुर   बैठा खेतों में

निर्धन एक किसान

दूर-दूर तक फटी धरा ये

पड़ते  शुष्क निशान

देख दशा कृषि की बेचारा

कैसे ले दृग मूँद?


तन पर वसन नहीं ढँकने को

दिखें पसलियाँ दीन

बस धोती ही एक पुरानी

ढँकती अंग मलीन

पल्लव बिना पेड़ हैं रूखे

आम बेल अमरूद।


सोच रहा मन में बेचारा

मेरा क्रूर भविष्य

दिखलाएगा अब दिन कैसे

सब हो गया हविष्य

है अकाल का समय भयंकर

भाग्य दिया है खूँद।


शुभमस्तु!


03.06.2025●7.15आ०मा०

                   ●●●

248/2025

          बजी कुंज में वंशिका

                       [ दोहा ]

[झरना,मधुकर,वंशिका,आँसू,कुटीर]


                  सब में एक

झरना    हरसिंगार     का,  देता  उर    आनंद।

छंद    सवैया   काव्य  में,  बहा   रहा   मकरंद।।

झरता झरना   शृंग  से,झर-झर- झर  सह वेग।

जीव - जंतु   वन मौन  हो,प्राप्त करें  ज्यों  नेग।।


मैं मधुकर  तुम  फूल  हो,करता मधुरस  पान।

प्रेमिल  जीवन   रागिनी, करती नव रस दान।।

अमराई    में    गूँजता , कोकिल  राग   वसंत।

मधुकर   चूमें  बौर  को,छुए न कण भर  दंत।।


बजी   कुंज    में वंशिका,  आए गोपी  ग्वाल।

रास      रचाया   नाचते,  करते  धूम धमाल।।

हरे  बाँस की  वंशिका,श्याम अधर की  शान।

रूठ गई  हैं  राधिका,  करें  कृष्ण  से   मान।।


नयनों   में  आँसू  नहीं, भरो प्राण की प्राण।

मृगनयनी   गजगामिनी, आजीवन दूँ   त्राण।।

आँसू  ढुलका  नैन से,क्या न गज़ब  हो  मीत।

पौरुष  पिघले  मोम-सा, चले  नारि विपरीत।।


रहते    कुंज   कुटीर   में,  लिए संत   संन्यास।

प्रवचन का  रस  बाँटते,जीवन हित मधु श्वास।।

जो  सुख शांत कुटीर में, मिले न महलों  बीच।

मन में   यदि  संतोष हो,   रहता   नेह   नगीच।।


                एक में सब

बजी वंशिका   कुंज में,   झरना झरे    सवेग।

आँसू  नहीं   कुटीर में, मधुकर   लूटें   नेग।।


शुभमस्तु !


04.06.2025●6.45 आ०मा०

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249/2025

     दुनिया से क्यों मोह लगाऊँ

                      [ नवगीत ]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कभी -कभी  लगता है मुझको

दुनिया से क्यों मोह लगाऊँ!


शांति   सभी   को प्रिय लगती है

कौन शांत है मुझे बताओ

खटे हुए सब दिवस निशा भर

सच क्या है सच-सच समझाओ

बैठूँ बंद करूँ दरवाजे

और खिड़कियाँ भी उढ़काऊँ।


सब अपने हित जिए जा रहे

कौन स्वार्थ से परे आदमी

मिलती खुशी कष्ट देने में

अपना सुख ही हुआ लाजमी

सौ - सौ काम करो उनके तो

एक न करूँ नहीं मैं भाऊँ।


बेटा  नहीं  पिता को पूछे

पत्नी नहीं चाहती पति को

धन पैसे की डोर बँधी है

प्रेयसि चाहे धन की रति को

ताबीजों में नुचती दाढ़ी

और नहीं अब मैं नुचवाऊँ।


मीठे बोल बोलकर सारे

अपना काम निकाल रहे हैं

समझ रहे हैं सबको पागल

नेहिल डोरे  डाल रहे हैं

झूठे सब सम्बंध जगत के

एकल रहूँ सर्व सुख पाऊँ।


 मानो या मत मानो मेरी

उपदेशक मैं  नहीं तुम्हारा

अपनी तो छोटी -सी दुनिया

हम न किसी के कौन हमारा

'शुभम्' ईश ही अपना है बस

गीत श्याम - राधा के गाऊँ।


शुभमस्तु !


04.06.2025● 11.15 आ0मा0

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