बुधवार, 25 जून 2025

मास लगा आषाढ़ का [ दोहा ]

 275 /2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                 सब में एक

प्रथम    वृष्टि  के  दोंगरे, गिरे  मास   आषाढ़।

आलिंगन  नभ  ने किया,भू का प्रमन  प्रगाढ़।।

वृष्टि    बिना  जीवन नहीं, सचराचर    बेचैन।

जीव - जंतु  प्यासे   मरें,  खुलें  न धरणी-नैन।।


मास   लगा  आषाढ़  का,झरीं विरल बौछार।

प्रमुदित खग पशु मीन भी,पावस का उपहार।।

गिरते  ही  बौछार  के,   पड़े  धरा  में   प्राण।

अंकुर  नव  उगने  लगे,हुआ   जीव का त्राण।।


सावन   में   गातीं  नहीं,  नारी  मधुर  मल्हार।

दूरी   बढ़ी   अतीत   की, मोबाइल  के    पार।।

कजरी   गीत मल्हार  के,दिवस गए  अब बीत।

सावन   में   झूले  नहीं,  बदल गईं सब   रीत।।


निर्मल    गंगा   पावनी,   भूतल  का   उपहार।

अघ  ओघों  को  दूर  कर, नर  को देती   तार।।

तीरथराज    प्रयाग    में,  यमुना गंगा    धार।

सरस्वती   से  जा   मिली, हरती पाप   हजार।।


पार  करे   सरि- धार  में, पारक  वह मल्लाह।

नहीं  भँवर  में  डूबना,  कभी  किसी की चाह।।

प्रभु   सबके  मल्लाह   हैं,करें जगत  से  पार।

वही   खे   रहे   नाव  को, कितने परम  उदार।।


                  एक में सब

गंगा में जल वृष्टि की,विरल सघन बौछार।

लगा मेघ मल्लाह ये,  गाए   मधुर  मल्हार।।


शुभमस्तु !


24.06.2025●11.15प०मा०

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