मंगलवार, 24 जून 2025

मुख पर हनीमून की रौनक [ नवगीत ]


264/2025


   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मुख पर

 हनीमून की रौनक

भीतर चले कटार।


 किसी और को

 मून मानती

क्यों भाए ये चाँद

रंगरेलियां 

मना चुकी जो

पतिघर लगता माँद

अवसर की

 तलाश में चिन्तित

गया भाड़ में प्यार।


क्रीत किए

तीनों अपराधी

रहे राज का राज

जब तक 

पति की घात नहीं की

मिटी न मन की खाज

खुला वासना का

हर खेला

हत्या शीश सवार।


मिले बेल को पेड़

लिपटना 

उसका सहज स्वभाव

अब पछताने से

क्या होता

मर्म मिला जो घाव

दोनों घर के 

द्वार बंद हैं

खुलता  कारागार।


शुभमस्तु !


19.06.2025●1.00प०मा०

                  ●●●

[8:24 pm, 19/6/2025] DR  BHAGWAT SWAROOP: 

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