बुधवार, 25 जून 2025

भरे पड़े अख़बार [ नवगीत ]

 276/2025


             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मानव तन में 

ढोर विचरते

भरे पड़े अख़बार।


आँख कान

मुख हैं मानव के

दो -दो लंबी टाँग

चिकनी दो- दो

शोभित  बाँहें 

सिंदूरी है माँग

धोखे में 

रखती पति अपना

महके इश्क बहार !


बहुत हुआ

मानव बन जाओ

सावित्री का देश

नाक सुरक्षित

कर लो अपनी

ठगो नहीं कर क्लेश

राजा छोड़

राज अपनाए

कहता जगत छिनार।


सोनम मुस्कानों ने 

काटे

तिया-चरित के कान

गुमी हुई हैं

यहाँ हजारों

घटा रहीं हैं मान

पाँव कुल्हाड़ी 

अपने मारे

होना नहीं सुधार।


शुभमस्तु !


25.06.2025●12.45 प०मा०

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