276/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानव तन में
ढोर विचरते
भरे पड़े अख़बार।
आँख कान
मुख हैं मानव के
दो -दो लंबी टाँग
चिकनी दो- दो
शोभित बाँहें
सिंदूरी है माँग
धोखे में
रखती पति अपना
महके इश्क बहार !
बहुत हुआ
मानव बन जाओ
सावित्री का देश
नाक सुरक्षित
कर लो अपनी
ठगो नहीं कर क्लेश
राजा छोड़
राज अपनाए
कहता जगत छिनार।
सोनम मुस्कानों ने
काटे
तिया-चरित के कान
गुमी हुई हैं
यहाँ हजारों
घटा रहीं हैं मान
पाँव कुल्हाड़ी
अपने मारे
होना नहीं सुधार।
शुभमस्तु !
25.06.2025●12.45 प०मा०
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